नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में क्या द्वंद्व था?
नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में यह द्वंद्व था कि वह इस नमक की पुड़िया को चोरी से छिपाकर ले जाए या कहकर दिखाकर ले जाए। पहले वह नमक की पुड़िया को कीनुओं के नीचे छिपाकर टोकरी में रख देती है। तब उसने सोचा इस पर भला किसकी निगाह जाएगी। इसे तो सिर्फ वही जानती है। पर जब कस्टम की जाँच के लिए उसका सामान बाहर निकाला जाने लगा तब उसने अचानक फैसला किया कि वह मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं ले जाएगी। वह नमक की पुड़िया को कस्टमवालों को दिखाएगी। उसने किया भी ऐसा ही।
जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?
साफिया जब अमृतसर पुल पर चढ़कर दूसरी तरफ जा रही थी तब कस्टम आफिसर पुल की सबसे निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। उन्हें उस समय अपना वतन ढाका याद आ रहा था। वे यह अनुभव करने की कोशिश कर रहे थे कि अपने वतन में आकर कैसा लगता है। अपने वतन की चीजों का मजा ही कुछ और होता है।
साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया?
साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया भारत ले जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह गैरकानूनी था। पाकिस्तान से लाहौरी नमक भारत ले जाना प्रतिबंधित था। उसके अनुसार नमक की पुड़िया निकल आने पर बाकी सामान की भी चिंदी-चिंदी बिखेर दी जाएगी। नमक की पुड़िया तो जा नहीं पाएगी, ऊपर से उनकी बदनामी मुफ्त में हो जाएगी।
इस प्रकार के उद्गार इस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं कि विस्थापन का दर्द व्यक्ति को जीवन भर सालता है। राजनैतिक कारणो से बँटवारे की खींची गई रेखाओं का अभी तक लोगों का अंतर्मन स्वीकार नहीं कर पाया है।
यह यथार्थ प्राकृतिक न होकर परिस्थितिवश आरोपित किया गया है। प्राकृतिक बात को व्यक्ति का मन स्वीकार कर लेता है पर आरोपित बात उसे स्वीकार्य नहीं हो पाती है। लोगों का मन अपनी पुरानी जगहों में ही भटकता रहता है।
नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
सिख बीबी के लिए लाहौर से नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में द्वंद्व उठता है। इस द्वंद्व से उसकी कई चारित्रिक विशेषताएँ उभरती हैं:
- साफिया अपने वायदे की पक्की है। वह सैयद है और सैयद कभी वायदा करके झुठलाते नहीं। वह जान देकर भी वायदा पूरा करने के प्रति संकलित है।
- अब प्रश्न उठता है कि वह नमक की पुड़िया को लाहौर से भारत कैसे ले जाए? वह पहले नमक को छिपाकर ले जाने का विचार करती है पर यह विचार उसे जँचता नहीं और वह कस्टम वालों को नमक की पुड़िया दिखा देती है। इससे पता चलता है कि वह लुका-छिपाकर काम करने में विश्वास नहीं करती।
- वह मानवीय रिश्तों में विश्वास करने वाली है। यही तर्क देकर वह अपने भाई को चुप कर देती है। इन्हीं रिश्तों की दुहाई देकर वह अटारी तथा अमृतसर में कस्टम अफसरों को अपने तर्कों से अपने पक्ष में करने में सफल हो जाती है।