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इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे- अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निर्बंध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बतायें बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है?


अरे वर्ष के हर्ष: बादल वर्ष भर के बाद वर्षा ऋतु में आते हैं अत: हर्ष के कारण होते हैं। यह संबोधन उचित ही है।

मेरे पागल बादल: कवि का बादल को पागल कहना सही है। बादल पागलपन की हद तक मस्त होते हैं।

ऐ निर्बंध: बादल सर्वथा स्वच्छंद होते हैं, किसी बंधन में नहीं बँधते अत: यह संबोधन भी उचित है।

ऐ उद्दाम: बादल उच्छृंखल और निरंकुश होते हैं। वे अपनी मर्जी के मालिक होते है अत: यह संबोधन सही है।

ऐ सम्राट.: बादल बादशाह के समान होते हैं। वे शासन करते है, मानते नहीं।

ऐ विप्लव के प्लावन: बादल विप्लव को लाते हैं अत: यह संबोधन सटीक है।

ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार: बादल चंचल शिशु के समान सुकुमार भी होते हैं अत: यह संबोधन उचित है।

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कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई बिंब दीजिए।


कवि बादलों को क्रांति दूत के रूप में देखता है। बादलो का आगमन सभी के लिए हर्ष का कारण होता है। क्रांति का आगमन शोषित वर्ग के हित में होता है।

कालिदास ने मेघों को यक्ष का दूत बनाकर अलकापुरी भेजा था ताकि वे उसकी प्रेयसी को उसके दु:खी हृदय का संदेश दे सकें।

अपना बिंब: मेघ आए बड़े बन-ठन के,

पाहुन हों जैसे शहर के।

अटारी पर हुआ प्रिया से मिलन,

झर-झर आँसू में बह गए बंधन।

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अट्टालिका नहीं है रे

आतंक-भवन

सदा पंक पर ही होता

जल-विप्लव-प्लावन।


कवि शोषक वर्ग (पूँजीपतियों) पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि इनके ऊँचे-ऊँचे महल न होकर आतंक- भवन हैं। ये लोग यहीं से निम्नवर्ग को आतंकित करते हैं। वर्षा का प्रभाव तो कीचड़ पर ही होता है अर्थात् क्रांति का प्रभाव धनिक-पूँजीपतियों पर ही होता है। क्रांति का तेज बहाव पूँजीपतियों को बहा ले जाता है।

हाँ, क्रांति का सुफल शोषित वर्ग को प्राप्त होता है।

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कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांशों को छाँटकर लिखिए।


रूपक अलंकार का प्रयोग

- तिरती है समीर-सागर पर (समीर रूपी सागर)

- आतंक-भवन ( आतंक रूपी भवन)

- रण-तरी (रण रूपी तरी (नाव))।

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पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया है? क्यों?


हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-

शस्य अपार

हिल-हिल

खिल-खिल

हाथ हिलाते

तुझे बुलाते

इस काव्यांश मे छोटे-छोटे पौधों का शोषित वर्ग के रूप मे मानवीकरण किया गया है। वे क्रांति के उगने की संभावना से हँसते हैं अर्थात् खुश हैं। वे हाथ हिला-हिलाकर क्रांति का आह्वान करते जान पड़ते हैं। यह कल्पना अत्यंत मनोरम है।

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