पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?
पत्र जैसा संतोष फोन या एस.एम.एस. का संदेश नहीं दे सकता, क्योंकि पत्रों का अस्तित्व स्थाई होता है; उनमें मानवीय प्रेम व लगाव का समावेश रहता है। पत्रों को हम सहेज भी सकते हैं लेकिन फोन पर की गई बात अस्थाई होती है। एस.एम.एस से संदेश सीमित शब्दों में भेजे जाते हैं। पत्र भावना प्रधान हैं व शिक्षाप्रद होते हैं। अमिट यादें उनके साथ जुड़ी होती हैं। पत्रों को एकत्रित करके पुस्तक का रूप भी दिया जा सकता है जबकि फोन या एस.एम.एस. मैं ऐसा नहीं होता। संदेश भेजने का सस्ता साधन भी पत्र ही हैं।
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पत्र धरोहर हो सकते हैं लेकिन एसएमएस क्यों नहीं? तर्क सहित अपना विचार लिखिए।
पत्र को धरोहर कह सकते हैं क्योंकि इन्हें सहेज कर रखा जा सकता है। उपयोगी व शिक्षाप्रद पत्रों को पुस्तक के रूप में भी रखा जा सकता है। जैसे गाँधी जी के पत्र एवं जवाहरलाल नेहरू द्वारा इंदिरा को लिखे गए पत्र आज तक सहेजे हुए हैं। ये पुस्तक के रूप में पुस्तकों की दुकानों व प्रत्येक सार्वजनिक पुस्तकालय में प्राप्त हो सकते हैं। जबकि एस.एम.एस भले ही लिखित रूप में हो लेकिन हम उन्हें स्थाई रूप में सहेज कर नहीं रख सकते। यदि कंप्यूटर के द्वारा सहेजना चाहें भी तो यह प्रक्रिया बहुत जटिल व महँगी पड़ती है।
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पत्र को खत, कागद, उत्ताम, जादू, लेख, कडिद, पाती, चिट्टी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताइए।
पत्र को खत उर्दू भाषा में, कागद कन्नड़ में, उत्तरम, जाबू और लेख तेलगू में और तमिल में कडिद कहा जाता है।
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पत्र लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हए? लिखिए।
पत्र-लेखन के विकास हेतु स्कूली पाठ्यक्रम में पत्र लेखन विषय के रूप में शामिल किया गया है। विश्व डाक संघ ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया है ताकि बच्चों की रुचि पत्र-व्यवहार में बनी रहे।
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क्या चिट्ठियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?
भले ही ‘वर्तमान में फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल का चलन बढ़ता जा रहा है। लोग सुविधानुसार अपने कार्यो को करने के लिए इन साधनों का प्रयोग करने लगे हैं लेकिन यह भी सत्य है कि पत्रों का चलन कम नहीं हो सकता। पत्रों की अपनी दुनिया है जिसमें विश्व स्तर तक वे अपना विस्तार पाते है। आज व्यापारिक व विभागीय कार्यो की प्रत्येक सूचना पत्रों द्वारा ही पहुँचाई जाती है। डाक विभाग के साथ-साथ कोरियर कंपनियाँ भी चाहे काम करती रहें लेकिन डाक विभाग का अपना महत्त्व है। पत्रों का चलन न कभी कम हुआ था, न कम है और न कभी कम होगा।