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उन्होंने संसार को भिखमंगा क्यों कहा है?


वीर सेनानी संसार को भिखमंगा कहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह संसार केवल लेना जानता है। दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने में लोग आगे नहीं आते। यहाँ तक कि वीर सेनानियों के साहस को बढ़ावा देने हेतु यशगान करना भी उनके बस की बात नहीं। वे तो स्वार्थपूर्ण जीवन व्यतीत करने में ही अपनी सफलता समझते हैं।
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एक भाव में रहकर सुख और दुख दोनों पीने का भावार्थ क्या है, कविता की पंक्तियों के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

कवि के अनुसार वीर पुरुषों के मन में केवल आजादी या आजादी हेतु बलिदान की भावना ही जागृत होती है। सांसारिक सुख-दुख के भावों से उन्हें कोई वास्ता नहीं होता वे सुख-दुख दोनों को समान महत्व देते हैं।
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वे हृदय पर असफलता की कैसी निशानी रखते हैं?

उन्हें अपने अंतर्मन से इस बात का दुख है कि भरसक प्रयत्न करने के बावजूद भी उनके जीते-जी यह देश स्वाधीन न हो पाया। यही बोझ उनके हृदय पर है।
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वे मस्ती में जीवन क्यों जीते हैं?

वे अपने मन में ठान लेते हैं कि उनका जीवन केवल देश हेतु है। कब, कहाँ और कैसे मृत्यु का आलिंगन करना पड़े इस हेतु उन्हें कोई डर या पछतावा नहीं। वे तो केवल अपने लक्ष्य ‘देश को स्वाधीन करवाना है’ में कामयाब होना चाहते हैं इसलिए मस्त होकर इसके लिए निरंतर कार्यरत रहते हैं।
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दीवाने शब्द किनके लिए प्रयुक्त हुआ है? उनका अपने जीवन में लक्ष्य क्या है?

दीवाने शब्द देश के वीरों के लिए प्रयुक्त हुआ है जिनका उद्देश्य है इस देश की स्वाधीनता हेतु अपने जीवन का पूर्ण समर्पण।
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