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लेखक को ओस की बूँद कहाँ मिली?

लेखक को आेस की बूँद बेर की झाड़ी के पास मिली। जो अचानक ही उसके हाथ पर आ गई थी। वास्तव में वह बूँद सूर्योदय तक सहारा पाना चाहती थी।
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ओस की बूँद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?


बूँद का क्रोध व घृणा भाव पेड़ों के प्रति है क्योंकि पेड़ों की जड़ों के रोएँ बड़ी निर्दयता से आनंद से घूमने वाली बूँदों को बलपूर्वक अपनी ओर खींचकर स्वयं पल्लवित हो जाते हैं व उनका अस्तित्व मिटा देते हैं।
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कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूँद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?

कहानी का अंत और आरंभ पढ़कर हम इसी नतीजे पर पहुँचे हैं कि ओस की बूँद लेखक को आपबीती सुनाते समय सूर्य की प्रतीक्षा कर रही थी। बूँद सूर्य का ताप पाते ही भाप बनकर उड़ना चाहती थी।
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हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज/पुरखा क्यों कहा?

बूँद ने हद्रजन व औषजन को अपने पूर्वज/पुरखे कहा क्योंकि एक जल कण में हद्रजन (हाइड्रोजन) व ओषजन (ऑक्सीजन) का ही मिश्रण होता है।
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“पानी की कहानी” के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

“पानी की कहानी” पाठ में बताया गया है कि पानी का जन्म हद्रजन (हाइड्रोजन) और ओषजन (ऑक्सीजन) से होता है। पहले पानी की बूँदें सूर्य के धरातल पर ही थीं। एक बार प्रचंड प्रकाश पिंड जो सूर्य से लाखों गुणा बड़ा था सूर्य के समक्ष आ गया। उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य का एक बड़ा भाग टूटकर कई टुकड़ों में विभाजित हो गया। एक टुकड़ा पृथ्वी बन गया। पहले तो यह ग्रह आग का गोला ही था। लेकिन धीरे-धीरे यह ठंडा हो गया और अरबों वर्ष पूर्व हद्रजन और ओषजन ने अपना प्रत्यक्ष अस्तित्व गँवाकर रासायनिक क्रिया द्वारा पानी को जन्म दिया।

अब ये पानी की बूँदें निरंतर सुर्य द्वारा भाप बनकर अपना अस्तित्व खो देती हैं और फिर वर्षा के रूप में बरसकर पानी का रूप धारण करती है।

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