पक्षी और बाबल द्वारा लाई गई चिट्टियों को कौन-कौन पढ पाते हैं? सोचकर लिखिए।
पक्षी और बादलों द्वारा लाई गई चिट्ठियों को पेड़, पौधे, नदियाँ, झरने, पानी और पहाड़ यानी प्रकृति के सभी रूप पढ़ लेते हैं।
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कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए क्यों बताया है? स्पष्ट कीजिए।
पक्षी व बादल देशों की सीमा रेखाओं को नहीं मानते। वे ईश्वर का विश्व--बंधुत्व का संदश सभी को समान रूप से बाँटते हैं। पक्षी के पंखों द्वारा फूलों की सुगंध दूर-दूर के देशों तक जाती है और बादल एक देश के पानी से बनकर दूसरे देश में बरसते हैं अर्थात् ये दोनों न कोई बंधन अपने पर रखते हैं और न किसी बंधन को मानते हैं। जबकि मनुष्य इस विश्व-बंधुत्व की भावना को समझ नहीं पाते और अपनी ही बनाई सीमा रेखाओं में बंद रहते हैं। इसीलिए कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए माना है।
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किन पंक्तियों का भाव है- पक्षी और बादल प्रेम सद्भाव और एकता का संदेश एक देश से दूसरे देश को भेजते हैं।
पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ पेड, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं।
पक्षी और बादल की चिट्टियों में पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ क्या पढ़ पाते हैं?
पक्षी और बादल की लाई हुई चिट्ठियों में से पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ ईश्वर का दिया विश्व बंधुत्व का संदेश पढ़ लेते हैं। वे यह अहसास करते हैं कि हवा व पक्षियों के पंखों से उड़-उड़कर आने वाली सुगंध और एक देश के जल की भाप से बना बादल दूसरे देश में बरसकर विश्व-बंधुत्व की भावना का ही प्रसार करते हैं। जबकि मानव सीमाओं के बंधनों में बंधे होने के कारण यह कार्य नहीं कर सकता परंतु वे बंधन मुक्त होने के कारण यह कार्य स्वच्छंदतापूर्वक कर सकते हैं।
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किन पंक्तियों का भाव है- प्रकृति देश-देश में भेदभाव नहीं करती। एक देश से उठा बादल दूसरे देश में बरस जाता है।
हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरते हुए पक्षियों की पाँखों पर तिरता है। और एक देश का भाप दूसरे देश में पानी बनकर गिरता है।