(क) पाठ-दुःख का अधिकार, लेखक-यशपाल।
(ख) पोशाकें मनुष्य को विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती है। ये पोशाकें ही मनुष्य को उसका अधिकार दिलाती है तथा समाज में उसका दर्जा निश्चित करती है। यदि कोई व्यक्ति अच्छी, महंगी, चमकदार पोशाक पहनता है तो वह अमीर और उच्च वर्ग का माना जाता है। साधारण पोशाक पहनने वाला गरीब व निम्न वर्ग का माना जाता है।
(ग) अच्छी पोशाक पहनने से मनुष्य के बंद दरवाजे खुल जाते है। समाज मे अच्छी पोशाक पहनने वाले को भला आदमी माना जाता है। उसका आदर-सत्कार किया जाता है। किसी दफत्तर आदि में जाता है तो उसकी बात ध्यान से सुनी जाती है।
(घ) जब हम समाज की निम्न श्रेणी के दुःख को देखकर झुकना चाहते है। अर्थात् उसके दुःख का कारण जानना चाहते है तो उच्च भावना के कारण झुक नहीं पाते। उन लोगों के साथ खुलकर बात नहीं कर पाते। तब यह पोशाक हमारे सामने रूकावट बन जाती है।
(क) पाठ-दुःख का अधिकार, लेखक-यशपाल।
(ख) लेखक ने समाज में शव को नया कफ़न ओढ़ाने की कुप्रथा पर व्यंग्य किया है। ऐसा मनुष्य जो जीते-जी अपने लिए कपड़ो का प्रबंध नहीं कर पाता: उसके मरने पर उसे नया कफन दिया जाता है। कफन जुटाने में चाहे परिवार वालों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाए। यह प्रथा वास्तव में गरीबों की विवशता है।
(ग) भगवाना की मृत्यु के बाद उसकी माँ के सामने परिवार का पेट भरने की समस्या आ खड़ी हुई घर में अनाज नहीं था। बहू बुखार से तप रही थी। उसकी दवाई की व्यवस्था करनी थी। उसके अपना छन्नी-ककना बेचकर कफन का कपड़ा खरीदा था। इस प्रकार उस पर एक-के बाद अनेक समस्याएँ आ खड़ी हुई।
(घ) भगवाना की माँ ने बच्चों का पेट भरने के लिए खेत से तोड़े गए खरबूजे उसे खाने को दे दिए। इस प्रकार जैसे-तैसे उनका पेट भर सका।
(क) पाठ-दुःख का अधिकार, लेखक-यशपाल।
(ख) बुढ़िया की स्थिति से अनजान लोगों ने उसे पत्थर दिल कहा। लोगों को इतना ही पता था कि एक दिन पहले बुढ़िया का जवान बेटा मरा है। और अगले दिन वह खरबूजे बेचने आ गई है। उसे लागों ने कठोर माँ समझा। परन्तु वे उसकी मज़बूरी न समझ सके। बुढ़िया इसलिए रो रही थी क्योंकि उसका जवान बेटा मर गया था।
(ग) संभ्रात महिला पुत्र-शोक से मूर्च्छित हो गई। उसे पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद मूर्छा आ जाती थी। इस प्रकार पुत्र वियोग के कारण उसने ढाई मास पलंग पर बिता दिए।
(घ) संभ्रांत महिला के दुःख को कम करने के लिए अनेक डॉक्टर बुलाए गए। दो-दो डॉक्टर हमेशा उसके सिरहाने बैठे रहते थे। उसके सिर पर हमेशा बर्फ रखी जा रही थी। इस प्रकार उसे प्रयत्न करके सँभाला जा रहा था।
(ङ) लेखक ने समाज के प्रत्येक दुखी व्यक्ति को अपना दुःख मनाने का अवसर देने की माँग की है। इस प्रकार शौक मनाने की सुविधा मिलने से उसके मन पर पड़ा दुःख का भार कम हो जाएगा। जैसे रोने से मन हल्का हो जाता है वैसे ही शोक मनाने से दुःख दूर हो जाता है।