पहले छंद में कवि की दृष्टि मानव के निम्नलिखित रूपों का बखान करती है:
बादशाह, गरीब व दरिद्र, मालदार, एकदम कमजोर मनुष्य का, स्वादिष्ट भोजन करने वाले का, सूखी रोटियाँ चबाने वाले मनुष्य का।
इस कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगी हैं
‘अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नजीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमीं’
यह पंक्तियाँ मुझे इसलिए अच्छी लगी हैं क्योंकि इन पंक्तियों से यह प्रेरणा मिलती है कि हमें सद्गुणों को अपना कर अच्छा आदमी बनना है। हमें बुराईयों का त्याग कर देना चाहिए। बुराइयाँ व्यक्ति को बुरा आदमी बना जाती है। समाज में अच्छे आदमी का ही आदर होता है, बुरे का नहीं।
कवि ने आदमी के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों का तुलनात्मक प्रस्तुतीकरण किया है वे रूप इस प्रकार हैं:
सकारात्मक नकारात्मक
बादशाह दीन-दरिद्र
मालदार कमज़ोर
स्वादिष्ट भोजन खाता इन्सान सूखी रोटियाँ खाता इन्सान
चोर पर निगाह करने वाला जूतियाँ चुराने वाला
जान न्यौछावर करने वाला जान लेने वाला
सहायता करने वाला अपमान करने वाला
शरीफ़ लोग कमीने लोग
अच्छे लोग बुरे लोग।