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ई. श्रीधरन – भारत के ‘मेट्रो मेन’

ई. श्रीधरन ( जन्म- 12 जून, 1932, पलक्कड़, केरल) भारत के प्रसिद्ध सिविल इंजीनियर हैं। कोंकण रेलवे और दिल्ली में मेट्रो रेल का श्रेय इन्हीं को जाता है। वे 1995 से 2012 तक दिल्ली मेट्रो के निदेशक रहे। उन्हें “भारत के मेट्रो मैन” के रूप में भी जाना जाता है। भारत सरकार ने उन्हें 2001 में ‘पद्म श्री’ तथा 2008 में ‘पद्म विभूषण‘ से सम्मानित किया है।

परिचय

ई. श्रीधरन का जन्म 12 जून, 1932 को केरल के पलक्कड़ में पत्ताम्बी नामक स्थान पर हुआ था। श्रीधरन की पत्नी राधा श्रीधरन हैं। इस युगल के चार बच्चे हैं, पुत्र- रमेश, अच्युत मेनन, सबसे छोटा बेटा एम. कृष्णदास और पुत्री शांति मेनन। ई. श्रीधरन ने बहुत कम समय के भीतर दिल्ली मेट्रो के निर्माण का कार्य किसी सपने की तरह बेहद कुशलता और श्रेष्ठता के साथ पूरा कर दिखाया। देश के अन्य कई शहरों में भी मेट्रो सेवा शुरू करने की तैयारी है या अब तक शुरू हो गया है, जिसमें श्रीधरन की मेधा, योजना और कार्यप्रणाली ही मुख्य निर्धारक कारक होंगे। केरलवासी श्रीधरन की कार्यशैली की सबसे बड़ी खासियत है एक निश्चित योजना के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर काम को पूरा कर दिखाना। समय के बिलकुल पाबंद श्रीधरन की इसी कार्यशैली ने भारत में सार्वजनिक परिवहन को चेहरा ही बदल दिया।

1963 में रामेश्वरम और तमिलनाडु को आपस में जोड़ने वाला पम्बन पुल टूट गया था। रेलवे ने उसके पुननिर्माण के लिए छह महीने का लक्ष्य तय किया, लेकिन उस क्षेत्र के इंजार्च ने यह अवधि तीन महीने कर दी और जिम्मेदारी श्रीधरन को सौंपी गई। श्रीधरन ने मात्र 45 दिनों के भीतर काम करके दिखा दिया। भारत की पहली सर्वाधिक आधुनिक रेलवे सेवा ‘कोंकण रेलवे’ के पीछे ई श्रीधरन का प्रखर मस्तिष्क, योजना और कार्यप्रणाली रही है। भारत की पहली मेट्रो सेवा कोलकाता मेट्रो की योजना भी उन्हीं की देन है। आधुनिकता के पहियों पर भारत को चलाने के लिए सबकी उम्मीदें श्रीधरन पर टिकी हैं। इसलिए सरकार ने उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए पद्म श्री और पद्म भूषण सम्मानों से सम्मानित किया। टाइम पत्रिका ने तो उन्हें 2003 में एशिया का हीरो बना दिया। 2011 में ई. श्रीधरन के उत्तराधिकारी के रूप में मंगू सिंह की नियुक्ति की गई थी।

शिक्षा

ई. श्रीधरन की प्रारंभिक शिक्षा पलक्कड़ के ‘बेसल इवैंजेलिकल मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल’ से हुई, जिसके बाद उन्होंने पालघाट के विक्टोरिया कॉलेज में दाखिला लिया। उसके पश्चात उन्होंने आन्ध्र प्रदेश के काकीनाडा स्थित ‘गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज’ में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने ‘सिविल इंजीनियरिंग’ में डिग्री प्राप्त की।

व्याख्याता

थोड़े समय के लिए ई. श्रीधरन ने सरकारी पॉलिटेकनिक, कोझीकोड में सिविल इंजीनियरिंग में एक प्राध्यापक के रूप में काम किया और एक वर्ष में एक शिक्षु के रूप में बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट में काम किया। वह बाद में भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आईईएस) में शामिल हुए। 1953 में यूपीएससी द्वारा आयोजित इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा में समाशोधन के बाद उनका पहला काम दक्षिणी रेलवे में दिसंबर, 1954 में प्रोबेशरीरी सहायक अभियंता के रूप में था।

मेट्रो की नींव

दक्षिण रेलवे में अपनी सेवा देने के बाद ई. श्रीधरन ने देश की पहली मेट्रो की सफलता में अहम भूमिका निभाई। 1970 में श्रीधरन ने भारत की पहली मेट्रो रेल ‘कोलकाता मेट्रो’ की योजना, डिजाईन और कार्यान्वन की जिम्मेदारी उठाई। श्रीधरन ने नाही सिर्फ इस परियोजना को पूरा किया बल्कि इसके द्वारा भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग की आधारशिला भी रखी। 1975 में उन्हें कोलकाता मेट्रो रेल परियोजना से हटा लिया गया।

पहला जहाज़

श्रीधरन ने अक्टूबर 1979 में कोचीन शिपयार्ड ज्वाइन किया। इस समय यह अनुत्पादकता के दौर से गुजर रही थी। शिपयार्ड का पहला जहाज़ ‘एम.वी. रानी पद्मिनी’ अपने लक्ष्य से बहुत पीछे था, पर उन्होंने अपने अनुभव, कार्यकुशलता और अनुशासन से शिपयार्ड का कायाकल्प कर दिया। उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि उनके नेतृत्व में यहाँ का पहला जहाज़ बनकर निकले। सन 1981 में उनके नेतृत्व में ही कोचीन शिपयार्ड का पहला जहाज़ ‘एम.वी. रानी पद्मिनी’ बनकर बाहर निकला।

कोंकण रेलवे

जुलाई 1987 में उन्हें पदोन्नत कर पश्चिमी रेलवे में जनरल मैंनेजर बना दिया गया और जुलाई 1989 में वे रेलवे बोर्ड का सदस्य बना दिए गए। जून 1990 में उनको सेवानिवृत्त होना था, पर सरकार ने उनको बता दिया था कि देश को उनकी सेवाओं की और आवश्यकता है। इस प्रकार सन 1990 में उन्हें कॉन्ट्रैक्ट पर लेकर कोंकण रेलवे का चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया गया। उनके नेतृत्व में कंपनी ने अपना कार्य सात वर्षों में पूरा किया। कोंकण रेलवे परियोजना कई मामलों में अनोखी रही। यह देश की पहली बड़ी परियोजना थी, जिसे ब्युल्ट-ऑपरेट-ट्रान्सफर पद्धति पर कार्यान्वित किया गया था। इस संगठन का स्वरूप भी रेलवे की किसी और परियोजना से भिन्न था। लगभग 82 किलोमीटर के एक स्ट्रेच में इसमें 93 टनल खोदे गए थे। परियोजना की कुल लम्बाई 760 किलोमीटर थी, जिसमें 150 पुलों का निर्माण किया गया था। कई लोगों के लिए यह आश्चर्य की बात थी कि एक सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजना नियत समय पर पूरी हो गयी थी।

दिल्ली मेट्रो, कोच्ची मेट्रो, लखनऊ मेट्रो को उन्होंने अपनी सेवा दी है। लखनऊ मेट्रो रेल के वे मुख्य सलाहकार हैं। उन्होंने जयपुर मेट्रो को भी अपनी बहुमूल्य सलाह दी और देश में बनने वाले दूसरे मेट्रो रेल परियोजनाओं के साथ भी वे जुड़े हुए हैं। विशाखापत्तनम और विजयवाड़ा की मेट्रो परियोजनाएं भी इनके देखरेख में ही हुई हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि देश में कहीं भी मेट्रो बने, उसमें मेट्रो ई श्रीधरन का सहयोग ज़रूर होगा।

सम्मान और पुरस्कार

ई. श्रीधरन को 2001 मे ‘पद्मश्री’ और 2008 मे पद्म विभूषण से सनमानित किया हुआ है। इसके उपरांत अनेक नामी अनामी सम्मान और पुरस्कार से उन्हे विभूषित किया गया है।

Rina Gujarati

I am working with zigya as science teacher. Gujarati by birth and living in Delhi. I believe history as a everyday guiding source for all and learning from history helps avoiding mistakes in present.

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