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कुँवर नारायण – कवि परिचय | कविता के बहाने | बात सीधी पर सप्रसंग व्याख्या | कविता-सार

कुँवर नारायण – कवि परिचय

आधुनिक हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म 19 सितंबर, 1927 ई. में फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. किया। आरभ से ही उन्हें घूमने-फिरने का शौक था। उन्होंने चैकोस्लोवाकिया पोलैंड, रूस और चीन आदि देशों की यात्रा की और विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त किए।

कुँवर नारायण ने कविता लेखन का आरंभ अंग्रेजी से किया किंतु शीघ्र ही ये हिंदी की ओर उन्मुख हो गए और नियमित रूप से हिंदी में लिखने लगे। कुँवर नारायण लंबे ममय तक ‘युग चेतना’ रात्रिका से जुड़े रहे पर पत्रिका के बंद हो जाने पर वे अपने निजी व्यवसाय (मोटर उद्योग) में व्यस्त हो गए।


कुँवर नारायण के  काव्य-संग्रह –

कविता संग्रह – चक्रव्यूह,  तीसरा सप्तक , परिवेश : हम-तुम,  अपने सामने,  कोई दूसरा नहीं,  इन दिनो, कविता के बहाने, बात सीधी थी पर।
खंड काव्य – आत्मजयी और वाजश्रवा के बहाने।
कहानी संग्रह – आकारों के आसपास।
समीक्षा विचार – आज और आज से पहले, मेरे साक्षात्कार, साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ ।
संकलन – कुंवर नारायण-संसार(चुने हुए लेखों का संग्रह) ,कुँवर नारायण उपस्थिति (चुने हुए लेखों का संग्रह), कुँवर नारायण चुनी हुई कविताएँ , कुँवर नारायण- प्रतिनिधि कविताएँ ।

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भाषा-शैली:

कुँवर नारायण की भाषा सीधी, सरल और चुटीली है। उनकी काव्य–भाषा में परपरागत छंद का आग्रह न होकर एक आतरिक लय और गति है, जो उसे काव्यात्मक गीतिमयता प्रदान करती है। कुँवर नारायण के काव्य में बिंब, प्रतीक और अलंकार आदि का प्रयोग अधिक मात्रा में हुआ है। उन्होंने दैनिक जीवन से ही बिंबो को ग्रहण किया है।


साहित्यिक परिचय/ सम्मान

कुँवर नारायण को हिंदी संसार में पर्याप्त सम्मान मिला। उन्हें व्यास सम्मान, भारतीय भाषा परिषद् पुरस्कार तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

कुँवर नारायण बहुभाषाविद् हैं। वे एक गंभीर अध्येता हैं। उनके ‘आत्मजयी’ खंड काव्य का अनुवाद इतालवी भाषा में हो चुका है। वे एक कुशल पत्रकार के रूप में ‘युग चेतना’ ‘नया प्रतीक’ तथा ‘छायानट’ से जुड़े रहे हैं। वे ‘भारतेंदु नाट्य अकादमी’ के अध्यक्ष भी रहे हैं। 1973 में प्रेमंचद पुरस्कार 1982 में तुलसी पुरस्कार तथा केरल का ‘कुमारन आरन अकादमी’ भी प्राप्त कर चुके हैं।


NCERT Solutions for class 12 Hindi Core कुँवर नारायण  

कविता के बहाने

कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने

चिड़िया क्या जाने?

विता एक खिलना है फूलों के बहाने

कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

बिना मुरझाए महकने के माने

फूल क्या जाने?

कविता एक खेल है बच्चों के बहाने

बाहर भीतर

यह घर, वह घर

सब घर एक कर देने के माने

बच्चा ही जाने!


बात सीधी थी पर – कविता 

बात सीधी थी पर एक बार

भाषा के चक्कर में

ज़रा टेढ़ी फँस गई ।

उसे पाने की कोशिश में

भाषा को उलटा पलटा

तोड़ा मरोड़ा

घुमाया फिराया

कि बात या तो बने

या फिर भाषा से बाहर आये-

लेकिन इससे भाषा के साथ साथ

बात और भी पेचीदा होती चली गई ।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना

मैं पेंच को खोलने के बजाय

उसे बेतरह कसता चला जा रहा था

क्यों कि इस करतब पर मुझे

साफ़ सुनायी दे रही थी

तमाशाबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।

आख़िरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था –

ज़ोर ज़बरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ।

हार कर मैंने उसे कील की तरह

उसी जगह ठोंक दिया ।

ऊपर से ठीकठाक

पर अन्दर से

न तो उसमें कसाव था

न ताक़त ।

बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह

मुझसे खेल रही थी,

मुझे पसीना पोंछती देख कर पूछा –

“क्या तुमने भाषा को

सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”


NCERT Solutions for class 12 Hindi Core कुँवर नारायण  

बात सीधी थी पर व्याख्या | कविता-सार 

कुँवर नारायण की यह कविता ‘कोई दूसरा नहीं’ संग्रह मे संकलित है। इसमें भाषा की सहजता की बात कही गई है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं। यह स्थिति कुछ ऐसी ही है जैसे हर पेंच के लिए! एक निश्चित खाँचा होता है। हम अनेक शब्दों को एक -दूसरे के पर्याय के रूप में जानते रहे हैं, पर उन सबके अपने विशिष्ट अर्थ भी होते हैं। अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है। जब ऐसा होता है तब किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। वह सुविधा के साथ हो जाता है।


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कविता के बहाने व्याख्या | कविता-सार 

यह कविता कवि के काव्य संग्रह ‘इन दिनों’ से ली गई है। इस कविता में कवि ने बताया है कि आज का समय कविता के अस्तित्व को लेकर आशंकित है। यह शक प्रकट किया जा रहा है कि यांत्रिकता का दबाव कविता का वजूद समाप्त कर देगा। इस कविता में एक ऐसी यात्रा का वर्णन है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की यात्रा है। चिड़िया के उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है, लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल की कोई सीमा नहीं होती।

इसी प्रकार कविता भी शब्दों का खेल है। शब्दों के इस खेल में जड़ चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी उपकरण मात्र हैं। इससे स्पष्ट है कि जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी, वहाँ सीमाओं के बंधन स्वयं टूट जाते हैं। यह सीमा घर की भी हो सकती है भाषा की भी हो सकती है और समय की भी हो सकती है।

Rahul Kumar

Rahul Kumar is a member of Zigya's Science channel and oversees Chemistry as a subject. He has completed his Masters of Science in Chemistry from Punjab University. Rahul is always full of ideas and brings with him, the enthusiasm and charm to get people involved in them. Follow his work at www.zigya.com

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