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चार्ल्स कोरिया – भारतीय वास्तुकार और शहरी नियोजक

चार्ल्स कोरिया भारतीय वास्तुकार और शहरी नियोजक थे। आज़ादी के बाद भारत में आधुनिक वास्तुकला के निर्माण का श्रेय उन्हें दिया जाता है। शहरी ग़रीबों की ज़रूरतों और पारंपरिक तरीकों और सामग्रियों के इस्तेमाल के लिए उन्हें उनकी संवेदनशीलता के लिए जाना जाता है। पद्म पुरस्कारों से अलंकृत चार्ल्स कोरिया ने स्वतंत्रता के बाद भारत की वास्तुकला को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई और कई बेहद उत्कृष्ट संरचनाएं डिज़ाइन कीं। अहमदाबाद में ‘महात्मा गांधी मेमोरियल’ और मध्य प्रदेश में विधान भवन की उत्कृष्ट संरचनाएं उनके हुनर का ही नमूना हैं।

जन्म और शिक्षा

चार्ल्स कोरिया का जन्म 1 सितम्बर सन 1930 को सिकंदराबाद, हैदराबाद राज्य (तेलंगाना) में हुआ था। उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन और प्रतिष्ठित मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से शिक्षा ग्रहण की। कोरिया ने भारत और विदेश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया। उन्होंने 1984 में मुंबई में ‘शहरी डिजाइन अनुसंधान संस्थान’ की स्थापना की थी। यह संस्थान पर्यावरण संरक्षण और शहरी समुदायों में सुधार के लिए समर्पित है।

संकीर्ण शहरो मे खुलेपन का ख्याल

जब चार्ल्स कोरिया भवन डिजाइन के क्षेत्र में अपने पैर जमा रहे थे, तब हर तरह की बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते भारत में सुंदर इमारतों से ज्यादा आम लोगों के लिए शहरों का विकास एक बड़ी चुनौती था। उन्हे एसे भवन निर्माण करने थे जिसमे प्रकृति के सानिध्य मे शहरी जीवन बीते। गरीब शहरी भी खुले आकाश का अनुभूति कर सके। मुंबई विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने वाले इस युवा के मन पर नए-नए आज़ाद हुए देश के संघर्ष व उसके आम लोगों की चुनौतियों की छाप हमेशा रही।

मिशिगन युनिवर्सिटी और मेसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में आगे की पढ़ाई करके लौटे चार्ल्स कोरिया जब 28 साल के थे, तब उन्हें अपने कॅरियर का पहला बड़ा प्रोजेक्ट मिला। उन्हें अहमदाबाद में गांधी स्मारक संग्रहालय का डिजाइन करना था। ट्यूब हाउस भी उन्होंने इसी दौर में बनाया। इन सालों में चार्ल्स कोरिया ने कई अकादमिक संस्थानों की इमारतों को भी डिजाइन किया।

नवी मुंबई की योजना

1970 के दशक में चार्ल्स कोरिया की दिलचस्पी शहरी योजना की तरफ हो गई। उनका मानना था कि लोग शहरों में बसने के उद्देश्य से नहीं आते। उन्हें यहां काम मिलता है, इसलिए आते हैं; लेकिन वे यहां अच्छे से रह पाएं, यह उस शहर के वास्तुकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है। इस विचार के हिमायती चार्ल्स कोरिया ने मुंबई के उपनगर नवी मुंबई की योजना बनाई थी और आज यह महानगर की एक बड़ी आबादी को बहुत अच्छे से संभाल रहा है। यहीं बेलापुर में उन्होंने निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए आर्टिस्ट विलेज नाम की एक आवासीय कॉलोनी का डिजाइन बनाया। इसे मुंबई की कुछ एक सबसे सुव्यवस्थित और खूबसूरत बसाहटों में गिना जाता है।

विदेशों में निर्माण कार्य

चार्ल्स कोरिया ने विदेशों में भी कई इमारतों को डिजाइन किया है और भव्यता व खूबसूरती के लिहाज से उन्हें आज भी अद्भुत माना जाता है। कोरिया का आखिरी बड़ा प्रोजेक्ट टोरंटो में आगा ख़ाँ संग्रहालय और उससे लगता इस्माइली सेंटर का निर्माण था।

वास्तुकला समीक्षक ह्यू पीयरमैन ने न्यूजवीक में इन इमारतों के बारे में लिखा था- “कोरिया ने यहां जिस तरह से प्रार्थनाघर का निर्माण किया है, वह अद्भुत है। अत्याधुनिक और उतना ही रहस्यमयी।” हालांकि चार्ल्स कोरिया के लिए यह रहस्य एक सीधे से सिद्धांत से निकलता था। वे कहते थे- “ऊपर ईश्वर का आकाश है और नीचे उसकी धरती। जब आप इन दोनों को समझने लगते हैं, तब आपको सही काम करने की प्रेरणा मिलती है।” उनकी बनाई इमारतें बताती हैं कि उन्हें शायद इस बात की काफी समझ थी।

‘रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स’ (रीबा) ने लंदन में भारतीय वास्तुकार चार्ल्स कोरिया की डिजाइनों और उनके अब तक के काम पर एक प्रदर्शनी आयोजित की थी। रीबा ने उस समय कोरिया को भारत के महानतम वास्तुकार का खिताब दिया था। गोवा मूल के चार्ल्स कोरिया को इस बात पर थोड़ी आपत्ति थी। उन्होंने प्रतिक्रिया दी थी- “शायद सबसे ज्यादा प्रयोगधर्मी ठीक रहता… लेकिन महानतम कहने के बाद आगे कोई स्पेस नहीं बचता।” चार्ल्स कोरिया की यह टिप्पणी वास्तव में उनके पूरे काम का निचोड़ है।

प्रमुख इमारतें

भोपाल का ‘भारत भवन’ हो, दिल्ली में ब्रिटिश काउंसिल की इमारत या अहमदाबाद का ‘गांधी मेमोरियल’ जो उनका पहला बड़ा प्रोजेक्ट था या फिर कनाडा के टोरंटो में बना ‘आगा ख़ाँ संग्रहालय, कोरिया की डिजाइन की गई इमारतों में खुले स्थान का खासा ध्यान रखा गया है। इस तरह कि वह डिजाइन का सबसे अहम हिस्सा हो। इसी तरह से वे इस बात का भी ख्याल रखते थे कि डिजाइन का आसपास के वातावरण से एक सामंजस्य रहे।

यह बात उनके द्वारा बनाई गईं बड़ी या भव्य इमारतों पर ही लागू नहीं होती। अहमदाबाद में उनकी डिजाइन के आधार पर ‘ट्यूब हाउस’ नाम की इमारत बनाई गई है। निम्न आय वर्ग के लिए बनी इस आवासीय इमारत को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हवा के प्रवाह से उसका तापमान नियंत्रित रहे। विदेशों में उनकी बनाई इमारतों में बोस्टन का एमआइटी साइंस सेंटर, कनाडा के टोरंटो का इस्माइली सेंटर आदि उनके विलक्षण वास्तुशिल्प की गवाही देते हैं।

पुरस्कार व सम्मान

चार्ल्स कोरिया ने कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते। वह शहरी योजना एवं किफायती आवास निर्माण के विशेषज्ञ थे। उन्हें 1972 में ‘पद्मश्री’ और 2006 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था। उन्हें वास्तुकला के लिए ‘आगा ख़ाँ पुरस्कार’, प्रीमियर इम्पीरियल ऑफ जापान और आरआईबीए के ‘रॉयल गोल्ड मेडल’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

निधन

चार्ल्स कोरिया का निधन 16 जून, 2015 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ। जीवन के आखिरी दिनों में कोरिया पानी के पुनर्चक्रण, ऊर्जा पुनर्नवीकरण, ग्रामीण बसाहट और क्षेत्रीय जैव-विविधता को लेकर अध्ययन-अनुसंधान कर रहे थे। भवन निर्माण जब पैसा कमाने का जरिया मात्र रह गया हो ऐसे आज के दौर मे कितने ऐसे वास्तुकार हैं, जो प्रकृति और परंपरा को लेकर इस कदर गहन चिंतन-मनन करते हैं, उनके संरक्षण के लिए संवेदनशील हैं। व्यावसायिक उद्देश मात्र से बने भवनो मे इसलिए सौंदर्य का वह पैमाना कहीं नहीं दिखता, जो चार्ल्स कोरिया के काम में मौजूद है।

Rina Gujarati

I am working with zigya as science teacher. Gujarati by birth and living in Delhi. I believe history as a everyday guiding source for all and learning from history helps avoiding mistakes in present.

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