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नवरात्रि – शक्ति पुजा का अनोखा पर्व

नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्रि संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि वर्ष में चैत्र औरअश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है।

देश का प्रमुख त्यौहार 

नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। विशेष करके गुजरात और बंगाल मे नवरात्रि अलग अंदाज मे मनाया जाता है। भारत जितना विशाल और वैविध्यपूर्ण देश है, नवरात्रि मनाने के देश मे उतने ही अलग अलग तरीके है।

हर प्रदेश की अपनी पहचान 

गुजरात में इस त्योहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में जान पड़ता है। यह पूरी रात भर चलता है। डांडिया का अनुभव बड़ा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, ‘आरती’ से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है। इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है। तरीका चाहे कोई भी हो वास्तव मे यह शक्ति पुजा का त्यौहार है।

महत्व

नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा समय माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं।

नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं । माता के सभी शक्तिपीठों का महत्व अलग-अलग हैं। लेकिन माता का स्वरूप एक ही है। कहीं पर जम्मू कटरा के पास वैष्णो देवी बन जाती है। तो कहीं पर चामुंडा रूप में पूजी जाती है। बिलासपुर हिमाचल प्रदेश मे नैना देवी नाम से माता के मेले लगते हैं तो वहीं सहारनपुर में शाकुंभरी देवी के नाम से माता का भारी मेला लगता है।

गरबा का महत्व

नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापन से होती है। घटस्थापना यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है, जो लगातार 9 दिन तक एक ही स्थान पर रखा जाता है। घटस्थापन के लिए गंगा जल, नारियल-श्रीफळ, लाल कपड़ा, मौली, रौली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल रखे जाते है। यह घट या कलश ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। जिसमे 27 छिद्र होते है। 9-9 छिद्रों की 3 हार हॉट4 है, जो 27 नक्षत्रो का प्रतीक है। हर नक्षत्र के 4 चरण होते है। 27 को 4 से गुणा करने पर 108 का अंक आता है। मान्यता के अनुसार कलश को मध्य मे रखकर उसके आसपास गरबा करने से ब्रहमांड प्रदक्षिणा का फल प्राप्त होता है।

लोक मान्यताओ के अनुसार नवरात्री के दिनो मे व्रत रखने का भी चलन है। अन्य सभी सामान्य जानो के साथ साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी भी नवरात्रि मे व्रत रखते है।

देवी दुर्गा की आराधना 

नवदुर्गा हिन्दू पन्थ में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं। दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं–

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

नवरात्रि मे क्रमश: माता के इन्ही रूपो की पुजा-अर्चना होती है।

  • प्रथम दिवस – देवी शैलपुत्री

  • दूसरा दिवस – ब्रह्मचारिणी माता

  • तीसरा दिवस – माँ चन्द्रघण्टा

  • चौथा दिवस – कूष्माण्डा माता

  • पांचवा दिवस – स्कंदमाता

  • छट्ठा दिवस – कात्यायनी देवी

  • सातवा दिवस – देवी कालरात्रि

  • आठवा दिवस – महागौरी देवी

  • नौवा दिवस – सिद्धिदात्री माता

यात्रा का महात्मय

इसके अतिरिक्त नौ देवियों की भी यात्रा की जाती है जो कि दुर्गा देवी के विभिन्न स्वरूपों व अवतारों का प्रतिनिधित्व करती है।

  • माता वैष्णो देवीजम्मू कटरा

  • माता चामुण्डा देवी – हिमाचल प्रदेश

  • माँ वज्रेश्वरी – कांगड़ा वाली

  • माँ ज्वालामुखी देवी – हिमाचल प्रदेश

  • माँ चिंतापुरनी – उना

  • माँ नयना देवी – बिलासपुर

  • माँ मनसा देवी – पंचकुला

  • माँ कालिका देवी – कालका

  • माँ शाकम्भरी देवी – सहारनपुर

कथा/मान्यता – नवरात्रि और महिषासुर वध

इस पर्व से जुड़ी एक कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसे वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया। उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए।

महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए थे और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा थे। तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।

Rina Gujarati

I am working with zigya as science teacher. Gujarati by birth and living in Delhi. I believe history as a everyday guiding source for all and learning from history helps avoiding mistakes in present.

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