बी डी जत्ती याने बासप्पा दानप्पा जत्ति (10 सितंबर 1912- 7 जून 2002) भारत के पांचवें उपराष्ट्रपति थे। (कार्यकाल : 1974 to 1979) वे 11 February से 25 July 1977 तक भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे। मृदुभाषी जत्ति ने शुरुआत बड़ी विनम्रता से की और आगे आगे कदम बढ़ाते गए। पांच दशक लंबे विस्तृत राजनीतिक करियर के दौरान नगर पालिका सदस्य के रूप में शुरुआत करते हुए भारत के दूसरे सर्वोच्च पद तक पहोंचे।
बासप्पा दानप्पा जत्ति का जन्म कर्नाटक के बागलकोट जिले में 10 सितंबर 1913 को हुआ था। उनके पिता एक विनम्र व्यक्ति थे। उन्होंने पारिवारिक कठिनाइयों को झेलते हुए अपनी शिक्षा पूरी की। प्रारम्भिक शिक्षा जामखंडी मे पूरी करने के बाद लॉ में स्नातक की पढ़ाई बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध कोल्हापुर के राजाराम लॉ कॉलेज से की। पढ़ाई के बाद बी डी जत्ती ने अपने गृह नगर जामखंडी में बहुत कम समय के लिए एक वकील के रूप में व्यवसाय किया।
1940 में, उन्होंने जामखंडी से नगर पालिका सदस्य के रूप में राजनीति में प्रवेश किया और बाद में 1945 में जामखंडी नगर पालिका के अध्यक्ष बने। उसके बाद वे जामखंडी राज्य विधानमंडल के सदस्य के रूप में चुने गए और उन्हें जामखंडी रियासत की सरकार में मंत्री नियुक्त किया गया। आगे चलकर 1948 में जामखंडी राज्य के ‘दीवान’ (मुख्यमंत्री) बने। दीवान के रूप में, उन्होंने महाराजा शंकर राव पटवर्धन के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे, और भारतीय संघ के लिए छोटी रियासत के महत्व के बारे में बताया। 8 मार्च 1948 को जामखंडी के बॉम्बे राज्य में विलय के बाद, वे फिर अपने कानूनी व्यवहार में लौट आए और 20 महीनों तक इसे जारी रखा।
बाद में, जत्ति को जामखंडी के विलय हुए क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए बॉम्बे राज्य विधान सभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया और उनके नामांकन के एक सप्ताह के भीतर, उन्हें तत्कालीन बॉम्बे के मुख्यमंत्री बी जी खेर के संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था। उन्होंने कुछ ही वर्षों तक उस पद पर काम किया। 1952 के आम चुनावों के बाद, उन्हें तत्कालीन बॉम्बे सरकार के स्वास्थ्य और श्रम मंत्री नियुक्त किया गया और राज्यों के पुनर्गठन तक उस पद पर रहे।
मैसूर राज्य के मुख्यमंत्री
तीसरे आम चुनावों में जामखंडी निर्वाचन क्षेत्र से पुन: निर्वाचित होने पर जत्ति 2 जुलाई 1962 को एस. निजलिंगप्पा मंत्रालय में वित्त मंत्री बने। उन्हें उसी निर्वाचन क्षेत्र से चौथी विधानसभा के लिए फिर से चुना गया और खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।
हालांकि, उनकी अल्पकालीन प्रेसीडेंसी विवादमुक्त नहीं रह सकी। अप्रैल 1977 में, जब केंद्रीय गृह मंत्री चरण सिंह ने नौ राज्यों की विधानसभाओं को भंग करने का फैसला लिया, तो जत्ति ने आदेश पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और मंत्रिमंडल की हर सलाह को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार करने की परंपरा को तोड़ दिया। हालांकि बाद में उन्होंने आदेश पर हस्ताक्षर किए। (हस्ताक्षर ना करने के लिए जत्ति ने स्टैंड लिया कि केंद्र की हरेक कार्रवाई न केवल राजनीतिक और संवैधानिक रूप से सही होनी चाहिए, बल्कि उचित भी प्रतीत होनी चाहिए।) 1979 में उपराष्ट्रपति के रूप में पद छोड़ने के बाद, जत्ति देश में राजनीतिक स्थिति के एक गहन पर्यवेक्षक के रूप में सुर्खियों में बने रहे।
1945-48: पूर्ववर्ती रियासत जामखंडी में शिक्षा मंत्री
1948: जामखंडी के मुख्यमंत्री (दीवान)
1948-52: संसदीय सचिव, पूर्ववर्ती बॉम्बे राज्य में बी.जी. खेर सरकार
1953–56: बंबई में मोरारजी देसाई सरकार में स्वास्थ्य और श्रम उपमंत्री
1958–62: मैसूर राज्य के मुख्यमंत्री
1962–68: कैबिनेट मंत्री, मैसूर सरकार
1968–72: पांडिचेरी के लेफ्टिनेंट गवर्नर
1972–74: ओडिशा के राज्यपाल
1974-79: भारत के उपराष्ट्रपति
1977 में छह महीने के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति
बी डी जत्ती एक गहरे धार्मिक व्यक्ति थे। वे एक धार्मिक संगठन “बसवा समिति” के संस्थापक अध्यक्ष थे, जिसने 12 वीं शताब्दी के संत, दार्शनिक और लिंगायत धर्म के सुधारक बसवेश्वरा के विचारो और कार्यो का प्रचार किया। 1964 में स्थापित बसवा संथाली ने लिंगायतवाद और शारनास पर कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं और विभिन्न भाषाओं में अनुवादित भी कारवाई हैं। वे सामाजिक गतिविधियों से संबंधित विभिन्न संगठनों में भी शामिल रहे।
7 जून 2002 को उनका निधन हो गया। उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में सम्मानित किया जाता है, जिसने निस्वार्थ सेवा की मिसाल कायम की और मूल्य आधारित राजनीति के लिए डटकर खड़े रहे। उन्हें ‘असाधारण विचार वाले एक साधारण व्यक्ति’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने ‘आई एम माई ओन मॉडल’ नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी थी। 2012 में उनका शताब्दी समारोह आयोजित कर उन्हे श्रद्धांजलि दी गई थी।
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