राज चन्द्र बोस (19 जून 1901 – 31 अक्टूबर 1987) भारतीय अमेरिकी गणितज्ञ एवं सांख्यिकीविद थे। वे ‘डिजाइन सिद्धान्त’ तथा ‘थिअरी ऑफ एरर करेक्टिंग कोड्स’ के लिए प्रसिद्ध हैं। गणित समाज में उन्हें आर सी बोस के नाम से प्रसिधि मिली। भारत के साथ-साथ उन्होनें विदेशों में भी अपनी विशेष पहचान बनाई। किंतु इस सम्मानित स्तर तक पहँचने में उन्होनें अथक परिश्रम किया।
उनका जन्म 19 जून 1901 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में हुआ था। उनके पिता प्रोतोप चन्द्र (प्रताप चन्द्र), हरियाणा राज्य के रोहतक जिले में वरिष्ठ चिकित्सक थे। पिता की नौकरी के कारण राज चन्द्र बोस भी कुछ समय बाद रोहतक चले गये और यही उन्होनें अपना बचपन बिताया। बचपन से ही उन्हें गणित के प्रति गहरा लगाव था और गणित के कठिन सवाल उन्हें आकर्षित किया करते थे। यद्यपि उनके पिता एक सम्मानित व्यवसाय में थे किन्तु कहा जाता था कि आर सी का बचपन गहरे आर्थिक संकट में बीता।
उन्होनें अपनी प्रारंभिक शिक्षा रोहतक में ही प्राप्त की। स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होनें दिल्ली के हिंदू कालेज में प्रवेश लिया और 1925 में एप्लाइड गणित में एम ए की स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। इसके बाद राज चन्द्र बोस नें गणित शिक्षक के रूप में भी कार्य किया और कई विद्यार्थियों को गणित की व्यवहारिकता से परिचित कराया।
इसी बीच वह कलकत्ता गये जहां उनकी मुलाकात विख्यात गणितज्ञ श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई। उनसे मिलना बोस के लिये किसी खुशी से कम नहीं था क्योंकि श्यामा प्रसादजी ने गणित विषयों पर काफी किताबें संग्रहीत कर स्वयं की एक लाइब्रेरी बना रखी थी। इसलिये राज चन्द्र बोस को तो मानो गणित ज्ञान का खजाना मिल गया। उन्होनें मुखर्जी के पास रह कर ही गणित की कई किताबों का गहन अध्ययन किय। इससे उनके गणित ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई और वह इस विषय में अधिक कुशलता प्राप्त करते चले गये।
यद्यपि बोस 1925 में एप्लाइड गणित में एम ए कर चुके थे किंतु इस पर भी उनकी गणित के प्रति जिज्ञासा शांत नहीं हुई थी अत: उन्होनें 1927 में शुद्ध गणित में भी स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। एम ए करने के बाद उन्होनें कई संस्थानों व विश्वविद्यालयों में रोजगार की तलाश की। किंतु उन्हें कहीं भी सफलता नहीं मिली। नौकरी की खोज में समय को व्यर्थ करना उन्हें रास नहीं आया और राज चन्द्र बोस इस बार रेखागणित के अध्ययन में लग गये।
उन्होनें अपना कैरियर 1930 में कोलकाता के आशुतोष कालेज से प्रारंभ किया और वह 1934 तक वहां गणित के लेक्चरर के रूप में कार्य करते रहे।
उनके भाग्य में ज्यामिति से ही कैरियर संवारना लिखा था। इस समय “भारतीय सांख्यिकी संस्थान” में ज्यामिति के प्रोफेसर का पद खाली पड़ा था। इस संस्थान के निदेशक पी सी महालनोबीस थे जो स्वयं सांख्यिकी के प्रसिद्ध विद्वान थे। उन्हें बोस की योग्यताओ का ज्ञान था।
अत: उन्होनें प्रोफेसर के पद पर कार्य करने के लिये तुरंत बोस को नियुक्त कर दिया और उन्हें हर सम्भव सहायता प्रदान करने लगे। बोस ने 1934 से 1938 तक यहां सांख्यिकीविद् के रूप में कार्य किया। बोस ने यहां ज्यामिति पढाते-पढाते ही सांख्यिकी का भी अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया था। बाद में उन्होनें 1938 से 1945 तक कोलकाता विश्वविद्यालय में लेक्चरर के रूप में कार्य किया। 1945 में उन्हें इसी विश्वविद्यालय में सांख्यिकी विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया और वह 1949 तक इसी पद पर बने रहे। इस संस्थान में अध्यापन व अध्ययन करने का उन्हें बहुत लाभ मिला।
उन्हें 1949 में संयुक्त राज्य अमेरिका जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां जाकर उन्हें उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के सांख्यिकी विभाग में सांख्यिकी के प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिल गई। 1966 में वह केनान प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए और 1971 तक कार्य करते रहे।
यहां कार्य करने के बाद बोस कोलोरेडो विश्वविद्यालय में सांख्यिकी व गणित के प्रोफेसर के रूप में कार्य करने लगे। अध्यापन कार्य के साथ-साथ वह निरंतर नये शोध कार्यों व खोजों के लिये भी समय निकाल लेते थे। अपने शोध कार्यों के दौरान ही उन्होनें स्विट्जरलैंड के गणितज्ञ लियोनार्ड यूलर के जादुई वर्ग के सिद्धांतो को गलत साबित किया। किंतु उनके शोधकर्यों का दायरा मात्र गणित या सांख्यिकी तक सीमित नहीं था। वर्ष 1980 में उन्हें गणित व सांख्यिकी का एमिरिटस प्रोफेसर बना दिया गया, जो उनके लिये सम्मान की बात थी। उन्होनें अपने शोध कार्यों को दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में भी जारी रखा।
उन्होनें “ग्रेसिको-लैटिन स्क्वायर” के लिये लैटिन व ग्रीक भाषा की बजाय देवनागरी भाषा को कोड रूप में प्रयोग करने का सुझाव दिया। साथ ही इन कोडों को समाज शास्त्र, मेडिसिन, जीवविज्ञान, कृषि व अन्य संबंधित विज्ञानों से संबंधित प्रयोगों में भी उपयोग करने का सुझाव दिया।
विज्ञान जगत में आर सी बोस ने अपना एक अलग स्थान बना लिया था। गणित व सांख्यिकी में उनके सेवा कार्यों को देखते हुए विश्व के कई संस्थनों ने उन्हें अपनी फेलोशिप तथा सदस्यता प्रदान की। वह संयुक्त राज्य अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेस के सदस्य बनें।
इसके अलावा उन्हें भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेस ने अपना फेलो बनाया। वह इंटरनेशनल स्टेटिस्टिकल इंस्टिट्यूट, इंस्टिट्यूट ऑफ मैथेमेटिकल स्टेटिस्टिक्स, अमेरिकन एसोसिएशन फार एडवांसमेंट ऑफ साइंसेस, न्यूयार्क एकेडमी ऑफ साइंसेस तथा अमेरिकन स्टेटिस्टिकल एसोसिएशन के फेलो रहे।
1971 से 1980 की अवधि में श्री बोस ने कोलोरेडो स्टेट यूनीवर्सिटी में उल्लेखनीय कार्य किया, जिसके लिये उन्हें 1976 में अमेरिका के सर्वोच्च वैज्ञानिक पुरस्कार “नेशनल मेडल ऑफ साइंस” से सम्मानित किय गया। साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका की साइंस एकेडमी का सदस्य भी मनोनीत किया गया। 1974 में इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट ने इन्हें “डाक्टरेट ऑफ साइंसेस” की मानद उपाधि देकर सम्मानित किय। पश्चिम बंगाल स्थित शांति निकेतन द्वारा भी उन्हें डी लिट की मानद उपाधि प्रदान की गई।
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