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अचंत लक्ष्मीपति – आयुर्वेदिक औषधियों के प्रचार-प्रसारक

Rina Gujarati 0
अचंत लक्ष्मीपति

अचंत लक्ष्मीपति (जन्म- 3 मार्च, 1880, आंध्र प्रदेश; मृत्यु- 4 जून, 1962) आयुर्वेदिक औषधियों के प्रचार-प्रसार के लिए प्रसिद्ध थे। वे अलग आंध्र प्रदेश राज्य की स्थापना के समर्थक थे। प्रसिद्ध संत रमण महर्षि के विचारों का उन पर बहुत प्रभाव था।

अँग्रेजी शासन मे पश्चिमी शिक्षा पद्धति से मेडिकल की डिग्री धारक व्यक्ति पैसा बटोरने की जगह आयुर्वेद का ना सिर्फ अध्ययन करे पर अपने संस्कृतिक मूल्यो के प्रचार प्रसार मे जीवन लगा दे वो श्री अचंत लक्ष्मीपति थे।

अचंत लक्ष्मीपति का जन्म 3 मार्च 1880 को आंध्र प्रदेश के गोदावरी ज़िले में हुआ था। उन्होंने 1909 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा की डिग्री प्राप्त की और अपने किसान पिता अचंत रमय्या की प्रेरणा से संस्कृत भाषा सीखी। वेदों, पुराणों और आयुर्वेद के ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और अपने समय के प्रसिद्ध वैद्य रत्न पंडित गोपालाचार्य लू के शिष्य बन गए।

अचंत लक्ष्मीपति ने अपनी शक्ति आयुर्वेद के प्रचार में लगाई। वे मद्रास आयुर्वेदिक कॉलेज और त्रिवेंद्रम आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रधानाचार्य रहे। अबाड़ी के प्रसिद्ध आरोग्य आश्रम और आंध्र आयुर्वेदिक फार्मेसी की स्थापना का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। ब्रिटिश काल में आरोग्य आश्रम के भवन निर्माण के लिए मद्रास सरकार ने इस शर्त के साथ आर्थिक सहायता देनी स्वीकार की थी कि लक्ष्मीपति ब्रिटिश सरकार के प्रति स्वामिभक्त रहने का आश्वासन देंगे। उन्होंने ऐसा आश्वासन देना स्वीकार नहीं किया और सरकार ने सहायता का प्रस्ताव वापस ले लिया। वे पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को भारत के लिए हानि कर मानते थे।[1]

पृथक आंध्र प्रदेश की स्थापना के समर्थक अचंत लक्ष्मीपति ने स्वदेशी आंदोलन में भी योगदान किया। वे गांधीजी के विचारों के समर्थक थे। समाज सुधार के क्षेत्र में भी वह अग्रणी थे और अंतरजातीय विवाह का भी वह समर्थन करते थे। उनकी कन्या का विवाह गैर ब्राह्मण के साथ हुआ था। प्रसिद्ध संत रमण महर्षि के विचारों का भी उन पर प्रभाव था।

Rina Gujarati

I am working with zigya as a science teacher. Gujarati by birth and living in Delhi. I believe history as a everyday guiding source for all and learning from history helps avoiding mistakes in present.

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